हिन्द स्वराज एक योद्धा का घोषणापत्र जिसने पश्चिमी साम्राज्य को सम्पूर्णता में चुनौती दी.

महात्मा गांधी का मूल्यांकन विभिन्न इतिहासकारों ने विभिन्न दृष्टिकोण से देखा और परखा है जिनमें से सबकी धारणाएं अलग-अलग है. कुछ लोग गांधी को महज एक अवसरवादी नेता मानते है. कुछ लोग बुर्जुआ नेता जो भारत मे उभरते सर्वहारा आंदोलन के आंदोलन को दबाकर भारत मे उठने वाले सर्वहारा क्रांति का हंता है तो वही, कुछ लोग का मानना है कि भारतीय राजनीति में संत का पदार्पण जिसने भारत को आजादी प्रदान कि इसके साथ ही कुछ आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि गांधी जन आंदोलन पर अंकुश लगाने वाला एक राजनेता है. इस प्रकार हम देख सकते है कि गांधी को विभिन्न इतिहासकारों ने अपनी विचारधारा की कसौटी पर कसकर विभिन्न निष्कर्ष पर पहुचे है. शायद इसीलिए दुनिया में ईशा मसीह के बाद सबसे ज्यादा किताबे गांधी पर लिखी गई है. एक सम्पूर्ण संतुलित निष्कर्ष के लिए हमें तत्कालीन परिस्थितियों एवं गांधी आगमन पूर्व उठाये गए कदमों से उनका मूल्यांकन किया जा सकता है.

गांधी जिस दौर में मौजूद है वह उपनिवेशवादी भारत है जहाँ उपनिवेश का लक्ष्य अर्थव्यवस्था में मातृदेश के हित के अनुकूल परिवर्तन कर राजनीतिक रूप से एक अधीनस्थ राज्य के रूप में स्थापित कर आधुनिकिकरण करना एवं समाज एवं धर्म की प्रक्रिया में सुधार लाकर लोगों को सभ्य बनाने का दावा करना तथा उपाधियों का वितरण कर भारतीयों के बीच समर्थक का ऐसा वर्ग तैयार करना जो रंग में भारतीय पर विचार में अंग्रेज हो.

गांधी से पुर्व पश्चिमी/ ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिरोध की पद्धति को हम कई रूपों में देख सकते है जिसमे पहला मॉडल कांग्रेस का उदारवादी मॉडल है. जो ब्रिटिश के अनब्रिटीश पहलू पर बल देता है और इसने ब्रिटिश के हितों को उजागर किया अर्थात इसने लोगों को बताया कि "भारत से ड्रेन ऑफ वेल्थ या धन की निकासी हो रही है. जिसमें प्रमुख नाम दादा भाई नौरोजी का है जिन्होंने कहाँ कि 'विदेशी पूंजी भारतीय संसाधनों की लूट और शोषण का जरिया है अर्थात ब्रिटेन भारत का खून चूस रहा है."१ इसके साथ ही इन लोगों ने पश्चिमी संवैधानिक मूल्यों के आधार पर ब्रिटिश शासन पर चोट किया अर्थात लोकतांत्रिक माध्यम से आवेदन, निवेदन के माध्यम से भारतीयों को रियायत देने पर बल दिया और पश्चिमी श्रेष्ठता में विश्वाश तथा ब्रिटेन से सपंर्क बनाये रखने पर बल दिया.

इसके उपरांत गांधीवादी युग के पुर्व ब्रिटिश प्रतिरोध के दूसरा मॉडल है कांग्रेस का उग्रवादी मॉडल जिसने ब्रिटिश के आर्थिक शोषण की आलोचना की और पश्चिमी संस्कृति के समानान्तर अपनी अपनी परंम्परा एवं संस्कृति पर बल तो वही दूसरी तरफ पश्चिमी तकनीक श्रेष्ठता में विश्वास अर्थात इन्होंने पश्चिमीकरण का विरोध कर आधुनिकीकरण पर बल दिया. इसके साथ इस पद्धति के लोंगों ने ब्रिटिश के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध की पद्धति पर बल दिया अर्थात, इसने स्वदेशी, बहिष्कार,स्वदेशी राष्ट्रीय शिक्षा एवं स्वराज कि मांग की परन्तु यह हिंसा एवं आक्रोश से मुक्त नहीं थी.

प्रतिरोध के अगले मॉडल में मार्क्सवादी पद्धति है जिसने पश्चिमी औद्योगिकरण के मॉडल के महत्व पर बल दिया तो साथ में उत्पादन संबंधों को बदलने की मांग (उत्पादन पर बुर्जुआ का अधिकार नहीं) इसके साथ ही सत्ता परिवर्तन का माध्यम इसने हिंसक क्रांति की बात की.

इस प्रकार औपनिवेशिक शासन के प्रतिरोध के इन तमाम पद्धतियों का स्वतंत्रता संग्राम में एक युग समाप्त हो गया लेकिन शोषक के शोषण करने में कोई कमी नहीं आई. यह कहना गलत होगा कि यह पद्धतियां असफल रही बल्कि इसने भारतीय शून्य चेतना वाली जनता में राष्ट्रीयता का संचार किया जिसके लाभों को हम गांधीवादी प्रतिरोध मॉडल में देख सकते है.

गांधी ने अपने प्रतिरोध मॉडल में एक प्रकार का नवाचार किया इनके पूर्व जिन लोगों ने पश्चिमी सभ्यता की कटु आलोचना कि उनमें प्रमुख नाम लियो टॉल्सटॉय, हेनरी डेविड थोरो, इमर्सन व रस्किन इत्यादि प्रमुख है इन लोगों ने पश्चिमी सभ्यता की आलोचना विचारक के रूप में कि है ब्यक्तिगत स्तर पर कभी राजनीति में नहीं आये. गांधी ने पश्चिमी सभ्यता का प्रतिरोध जन आंदोलन के माध्यम से किया उन्होंने राजनीति में बुद्ध, शंकराचार्य, कंफूशियस को लाये उनका मानना था कि धर्म के बिना राजनीति अनैतिक है. गांधी अपने आंदोलन में सामान्यजन का लिबास, जनभाषा का प्रयोग व सामान्य जन की जीवन पद्धति को अपनाने के साथ रचनात्मक ग्रामीण कार्य के माध्यम से लाखों गांव को कांग्रेस की राजनीति से जोड़ना. उदाहरण के लिए प्रभात फेरी, अछूतोद्धार कार्यक्रम इत्यादि; अछूतोद्धार कार्यक्रम के माध्यम से दलितों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा व नमक जैसे मुद्दे को उठाकर ब्रिटिश सरकार की उदारता की पोल खोलने के साथ मध्य व निम्न वर्ग की खाई को पाटने का कार्य किया.

गांधीजी अपनी प्रसिद्ध कृति 'हिन्द स्वराज' में पश्चिमी सभ्यता की क्रमबद्ध आलोचना करते है जो उन्होंने 1908 ई. में इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका लौटते समय लिखा था.

हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली

गांधीजी पश्चिमी प्रजातंत्र एवं केन्द्रीय राजब्यवस्था की आलोचना करते हुए कहते है कि "जिसे आप पार्लियामेंट की माता कहते है वह पार्लियामेंट तो वैश्या और बांझ है."२ अर्थात पार्लियामेंट ने आजतक कोई अच्छा कार्य नहीं किया और दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री पार्लियामेंट में कैसे-कैसे काम करवाता है उसकी लग्न इसमें रहती है कि दल अगली बार चुनाव कैसे जीते और इनकी जो न्याय प्रणाली है ये साम्राज्य के यंत्र है यह भारतीयों में मतभेद फैलाते है. "जिन्हें अपनी सत्ता कायम रखनी है वे अदालतों के जरिये लोगों को बस में रखते है. लोग अपने झगड़े खुद निपटा ले तो तीसरा आदमी उनपर कभी अपनी सत्ता नहीं जमा सकता."३ इसलिए "अंग्रेजी सत्ता की मुख्य कुंजी उनकी अदालते है और अदालतों कि मुख्य कुंजी वकील है."४ गांधीजी इसका वैकल्पिक मार्ग सुझाते हुए कहते है कि राज्य होने का अर्थ है कि वह हिंसा व ताकत (सेना और पुलिस) के सहारे टिका होगा. इसलिए राज्य की शक्तियां जितनी कम हो उतनी ठीक है सत्ता का स्थानांतरण नीचे से ऊपर की ओर होना चाहिए. प्रत्यक्ष चुनाव ग्रामीण पंचायत के माध्यम से हो जिसके पास विधायी, कार्यपालिका, न्यायपालिका तीनों की शक्ति हो उसके ऊपर तालुका, जनपद, प्रदेश फिर देश की पंचायत; देश की पंचायत का कार्य यह होगा कि वह देश को एक रख सके. गांधीजी न्याय के संदर्भ में कहते है कि न्याय के लिए लोग कोर्ट का प्रयोग करने की बजाय पंच के माध्यम से अपने विवादों का समाधान करे.

गांधीजी पश्चिमी शिक्षा पद्धति को चुनौती दी और कहा कि "पश्चिमी शिक्षा व शिक्षक केवल दिमाग पर जोर डालते है वे ह्रदय एवं अचार के अंग को एकदम अछूते छोड़ देते है फिर वे शारीरिक काम को नीचा समझते है और फिर इस प्रकार की शिक्षा का प्रचार उन देशों में करते है जहाँ पर आधे से अधिक संख्या कृषि में संलग्न हो यह सरासर पाप है."५ गांधीजी शिक्षा की वैकल्पिक पद्धति बताते हुए कहते है कि शिक्षा 3H (हेड, हर्ट, हैंड ) पर आधारित हो जिससे मानव का सम्पूर्ण समेकित विकास हो. इसी के प्रयोग के रूप में असहयोग आंदोलन के समय 4 संस्थानों ( जामिया मिलिया इस्लामिया, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ) की स्थापना हुई.

गांधीजी आगे पश्चिमी औषधि विज्ञान की आलोचना करते हुए कहते है कि " यह रोगियों को आराम देने वाला है यह रोगों के कारण या जड़ को मिटाने वाला कार्य नहीं करता बल्कि इसने शीर्घ चंगा होने की कामना रहती है."६ गांधीजी डॉक्टर बनने के बारे में कहते है कि "हम डॉक्टर क्यों बनते है यह भी सोचने की बात है उसके सच्चा कारण तो आबरुदार है और पैसा कमाने का धंधा करने की इच्छा है और मुगल बादशाह को भरमाने वाला एक अंग्रेज डॉक्टर ही था'.७ इसलिए उनका मानना है कि सभी लोगों को नियंत्रणात्मक चिकित्सा को अपनानी चाहिए उनका मानना है कि सभी रोगों का अभिर्भाव का कारण प्राकृतिक नियमों की अवहेलना है इसलिए हमें अपने पर आत्मसंयम रखना चाहिए.

आगे गांधीजी पश्चिमी उपभोक्तावादी, औद्योगिक, मशीनीकरण संस्कृति की आलोचना करते हुए कहते है कि "वर्तमान सभ्यता का ह्रदय मशीनरी है. लोहे के युग, लोहे का ह्रदय, मशीन एक पैचसिक मूर्ति हो गई है जिसकी पूजा 20 सदी कर रहा है इसका अंत होना चहिये यह हिन्दुओ के द्वारा कहे गए 'अंध प्रेम' के समान है. ये लोग भौतिक उन्नति को प्रधानतुल्य मानते है और आध्यात्मिक शक्ति की हसी उड़ाते है और पैसे की पूजा करते है जो मजदूरों एवं दुर्बल के लिए अभिशाप है यह राष्ट्र की सम्पूर्ण जीवन शक्ति को चूस लेती है. यह मनुष्य को गुलाम बनाता है. इसलिए इसके बदले भारत के प्राचीन हल, चरखे, और ब्रह्म ज्ञान वाली परम्परा को वैकल्पिक मॉडल सुझाते है जिससे भारत कॄषि, वाणिज्य व अन्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है."८

गांधीजी पश्चिमी पूंजीवाद मॉडल व अंग्रेजों के सभ्य होने के दावों को झूठा बतलाते है और बाजार प्रतिस्पर्धा को बुरा मनाते है इसकी जगह पर वे परस्पर सहयोग की भावना पर बल देते है. इस प्रकार गांधीजी ने ब्रिटेन के अधीन दासता को चुनौती दी और पश्चिमी सभ्यता को वे "पैगम्बर मुहम्मद साहब के शब्दों में 'शैतानी हुकूमत' व हिन्दू धर्म के अनुसार 'निरा कलयुग' मानते है"९ और इसके समाधान को वो 'रामराज्य', 'खुदाई हुकूमत' या 'Kingdom of God' कहते है. गांधीजी की इन सम्पूर्ण शिक्षाओं के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने 'Discovery of India' में लिखते है कि "गांधीजी की शिक्षाओं का सारतत्व था निर्भीकता..... सिर्फ, शारीरिक साहस नहीं बल्कि भय रहित मन ब्रिटिश के अंतर्गत भारत का प्रमुख मनोबल भय था, चतुर्दिक ब्याप्त गलघोटू भय......इसी चतुर्दिक ब्याप्त भय के विरोध में गांधीजी ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, डरो मत."१०

इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में कह सकते है कि हिन्द स्वराज एक योद्धा का घोषणापत्र था जिसने निराश हताश लोगों में आत्मबल का संचार किया. गांधीजी ने पश्चिमी भौतिकतावादी संस्कृति को नकारकर सम्पूर्ण जनमानस में ब्रिटिश सरकार के प्रति अविश्वास पैदा किया उनका अहिंसा का सिद्धांत सदियों पहले अंकित था महावीर, बुद्ध और वैष्णव सम्प्रदाय ने इसे भारत भर के करोङो नर- नारियों को अपनी प्रिय वस्तु बना दिया जिसमें गांधीजी ने केवल वीरता का समन्वय भर दिया जो अपने संस्कृति और सभ्यता पर आधारित थी. जिसने वर्षों सोये हुए निद्रित राष्ट्र में क्रियात्मकता का प्राण फूका.

संदर्भ सूची -:

१- भारत का स्वतन्त्रता संघर्ष, विपिन चंद्रा: दिल्ली विश्वविद्यालय प्रकाशन ;पृष्ठ संख्या- 68,71

२- हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली; पृष्ठ संख्या-22

३- हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली; पृष्ठ संख्या-41

४- हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली; पृष्ठ संख्या-42

५- महात्मा गांधी, रोमा रोला: सेंट्रल बुक डिपो, इलाहाबाद; पृष्ठ संख्या- 28

६- महात्मा गांधी, रोमा रोला: सेंट्रल बुक डिपो, इलाहाबाद; पृष्ठ संख्या-28

७- हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली; पृष्ठ संख्या-43

८- महात्मा गांधी, रोमा रोला: सेंट्रल बुक डिपो, इलाहाबाद; पृष्ठ संख्या-29,30

९- हिन्द स्वराज, महात्मा गांधी: शिक्षा भारती, दिल्ली; पृष्ठ संख्या-27

१०-भारत का स्वतन्त्रता संघर्ष, विपिन चंद्रा: दिल्ली विश्वविद्यालय प्रकाशन ;पृष्ठ संख्या- xxiv

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Neeraj Patel

अगर एक ही बार झूट न बोलने और चोरी न करने की तलक़ीन करने पर सारी दुनिया झूट और चोरी से परहेज़ करती तो शायद एक ही पैग़ंबर काफ़ी होता।